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पहचान

हर राहगीर के दिल में दम क्यों नहीं होता... सबकी आँखे कभी नम क्यों है होता ??? क्यों मन की बात सिर्फ पन्नो पे है उतरती ... जो है इसकी मंजिल वहां क्यों नहीं रहती ? हर किसी का कोई दाता क्यों है ... कोई अपना विधाता खुद क्यों नहीं है?? क्यों फ़र्क़ करता है समय सबके रिश्ते में ... क्या है ये सही जो आती है सबके हिस्से में ?? क्या हर पहचान की कुछ कीमत है होती ... जो पूरा न हो तो पहचान , पहचान नहीं होती ???